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किसी की आबरू के खातिर क्या कोई मरता है,
किसी की जुस्तजू में क्या कोई आह भरता है,
किसी की गुफ्तगू से क्या कोई बिखरता है,
दिल_ए_दर्द भी क्या कोई मरहम से सुधरता है,
किसी के हुबाहु भी क्या कोई मिलता है,
नशा ये आरज़ू का बताओ कैसे उतरता है..!
मैं बांटू दर्द अपना मुझे ऐसा कोई हमदर्द ना मिला,
जो मिला दर्द लेके मिला ,दर्द देके मिला..!
मैंने उस पर लिखी है एक ग़ज़ल,
वो ऐसी है जैसे कीचड़ में खिलता कमल.
मैंने भेजा है एक गुलाब उसको,
ये है मेरी तरफ से छोटी सी पहल,
क्या बताऊं? कितनी लावारिश हैं यादे उसकी,
उसकी यादों से मेरी इबादत में पड़ता है खलल,
कितने भी कठिन मरहलें हों ज़िन्दगी में,
मां की दुआए साथ हो तो है हर काम है सहल,
मुझको यूं नज़र अंदाज़ करके ना जा,
मुझको उजाड़ने में सिर्फ तेरा है दखल,
मुझसे लग कर ही बुनती है वो सारे सपने,
उसके लिए मेरा कंधा ही है रहल..!
मेरी मुश्किलों का कोई हल नहीं,
वो मुझे मिल जाए मैं इतना सफल नहीं,
चल पड़े इश्क़ की राह में जो सफल नहीं.
मैं हो था वहीं हूं मुझ में कोई बदल नहीं,
मैंने देखा है तेरी आंखो में मोहब्बत की कोई पहल नहीं,
बिन तेरे मुझमें अब कोई चहल नहीं,
तू चाहे या ना चाहे मुझे कोई खलल नहीं,
हर कोई मुझे समझे मैं इतना भी सहल नहीं..!
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