sach ko sach kehna chhod dete hain

दिल को टूटा हुआ खिलौना समझ कर छोड़ देते है,
यहां अपने ही अपनों को रोता छोड़ देते है,

बड़े ही ख़ुदग़र्ज़ है लोग यहां,
चन्द सिक्को के खातिर गरीबों को बिलकता छोड़ देते है,

ये कैसा रंग बदल रहा है ज़माने का,
यहां अपने से कमज़ोरो को बिखरता छोड़ देते है,

कितने कमज़र्फ हो गए है लोग यहां,
यहां मजबूरो को तड़पता छोड़ देते है,

ताज्जुब ही ताज्जुब है इस दौरे सियासत में,
यहां रियासत को अपनी तरसता छोड़ देते है,

यहां छाया हुआ है असल में मौसम शौहरत का,
बिक जाए अगर इंसान तो सच को सच कहना छोड़ देते है..!

By : Ammara Khan

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Dard Shayari Views - 351 7th Feb 2022

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