उसने गर पूछ लिया कैसे हो,
तो क्या जवाब दूंगा मै सोचता हूं,
की जैसा बिछड़ते वक्त था,
उससे भी बदतर हालत रखता हूं,
तुझे याद करता हूं,
और हर सांस के साथ करता हूं,
शायर तो नहीं हुआ हूं,
पर गजलें नज़्में बेहिसाब लिखता हूं,
पहले रखता था दिल भी,
अब तो मुस्कुराहट भी झूठी रखता हूं,
खैर खबर ना पूछ मेरी,
बस तू खुश रहे ये दुआ करता हूं,
पहले जैसा बस इतना है.
के तुझ पर आज भी मरता हूं..!
तुम्हारी हर एक वो यादें,
तुम्हारी हर एक वो बातें,
तुम्हारी हर एक वो अदाएं,
मैने अपनी शायरी में लिखी है,
लोगो ने देखा नहीं है तुम्हें,
फिर भी वो एक बात कहते है,
कमाल कि होगी तुम्हारी मोहब्बत जिसके,
लिये तूने यें शायरी लिखी है..!
बैठे बैठे कभी ये खयाल मन में आ जाना,
याद आता है वो बचपन का बेफिक्र ज़माना,
मैदान में खेलना और घर को भूल जाना,
दोस्तों से झगड़ना पलभर में मान जाना,
बारिश में भीगने के कई बहाने बनाना,
बहते पानी में काग़ज़ की कश्ती चलाना ।
जहां दौड़ते भागते त्योहारों को मानते वो गलियां,
कुछ पैसे देकर पापा ने हमारे चेहरे पर मुस्कान लाना,
सोफ़े पर सोना सुबह ख़ुद को बिस्तर में पाना,
स्कूल न जाने के कितने ही बहाने बनाना,
पापा की डाँट पर अचानक सहम जाना,
भागकर मम्मी से फिर गले लग जाना,
दादा-दादी नाना-नानी से हमेशा प्यार पाना,
भाई बहन से दुलार तो कभी उनको चिढ़ाना,
याद है लेकिन अब नहीं आएगा वो ज़माना,
बचपन जिसमें बड़े होने का सपना सजाना..!
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