जब उठी शमशीरे ज़ालिम ज़ुल्म ढाने के लिए
जोश पर आई मुहब्बत सर कटाने के लिए
आज फिर मेरी नज़र उनकी नज़र से मिल गई
मुद्दतें लग जाएंगी अब होश आने के लिए
तेरी ख़ातिर जाने किस किस से मुहब्बत की गई
मेरे हमदम एक तेरा प्यार पाने के लिए
इस लिए मुर्शिद के दर पर का रहा हूं दोस्तों
ज़ख्म ए दिल होते नहीं सब को दिखाने के लिए
एक बूढ़े बाप ने ख़ुद को भी गिरवीं रख दिया
सिर्फ अपनी बेटियों के घर बसाने के लिए
मुद्दतों के बाद कैसे मुस्कुराए हो निज़ाम
क्या उन्हें फुर्सत नहीं थी याद आने के लिए