और लेट के अपने बिस्तर पर,
चाय के रखे होंगे दो कप,
मन खट्टा उसका होता होगा,
गुज़रे लम्हों की मीठी यादें,
झूठे घूंट भरती होगी,
मेरे साथ को मरती होगी,
आज़ाद है हम
आज़ाद है हिन्दुस्तान हमारा,
फिर क्यूं करते है हम,
मज़हबों के नाम पर बटवारा,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख,ईसाई ,
सब का था स्वतंत्रता का नारा,
आज भी क्यूं लड़ रहे है हम,
अपने अपने हक के लिए दोबारा,
क्यूं ना अपने दिलों से अन्धकार मिटाए
जलाएं प्रेम का दीप प्यारा,
सब मिलकर एक हो जाएं,
बन जाएं एक दूसरे का सहारा,
सब की मुश्किलों में काम आएं,
करें भेद,भाव से किनारा,
ये देश हमारा सब से न्यारा,
चाहे सुख शान्ति का गुज़ारा..!
मैं कभी कह न सका बात अपनी,
है बहुत अजब सी ये जात अपनी,
थीं सभी की निगाह हमारी ज़ानिब,
किसी सूरत न हुई मुलाक़ात अपनी,
वो आई भी हंस के बोलती भी रही,
मगर छुपा गई हर एक बात अपनी,
वो जो मुझे पसंद है, शहजादी है,
उस जैसी तो नहीं है औकात अपनी,
सारे मौसम बस महलों के लिए हैं,
फूस की गर्मी न ही बरसात अपनी,
कैसे आए इस मुआशरे में हम दर्दी,
सबको लगती है ऊँची जात अपनी,
जबसे बिछड़ गया है हमसफ़र मेरा,
तारे गिनते हुए कटती है रात अपनी,
गीबतें छोड़ दो, मान लो ये मशविरा,
या तो चुप रहो या करो बात अपनी..!
तेरे दिल में कितने ठिकाने हैं, बता तो सही,
मुझसे मिलने के कितने बहाने हैं , बता तो सही,
तेरी हंसी के पीछे आंखों में नमी देख लेते हैं,
तेरे दोस्त कितने पुराने हैं, बता तो सही,
हज़ार अफसाने मौजूद हैं नाकाम मुहब्बत के,
तुझे किस्से कितने सुनाने हैं, बता तो सही,
मैं तैयार करके आया हूं जिस्म व दिल को तेरे मुताबिक,
तुझे ज़ख्म कितने लगाने हैं, बता तो सही,
वैसे तो हर कोई दिखाई देता है अपना यहां,
तुझको गले से कितने लगाने हैं बता तो सही,
हर बार ही हार मिली है हमें रिश्तों को निभाने में,
हार के जस्न कितने मानने हैं, बता तो सही..!
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