ज़िन्दगी यूं बसर हुई हमारी तन्हाई में,
कभी हम रहे भीड़ में, कभी रहे तन्हाई में,
हर वक़्त मुस्कुराते रहे हम लोगों के सामने,
आंख से आंसू निकले सिर्फ रात की तन्हाई में,
अभी तो बहुत मशरूफ हूं, ज़िन्दगी के जमेलों में,
खुद के लिए वक़्त निकालूंगा कभी शब-ए-तन्हाई में,
मजबूरी-ए-हयात का क्या कहना लोगों,
हम तन्हा ही ना हुए कभी तन्हाई में..!