ज़माने से थक कर खुद की ही जुस्तजू में निकलें हैं,
आज सफर में साथ काफिले की आरज़ू में निकलें हैं,
हम तन्हा थे, ताउम्र तन्हा ही रहे,
खुद से करने खुद ही गुफ्तगू निकले है,
जिससे मिलकर फिर मुझे किसी इत्र की ज़रूरत ना रहे,
तलाश करने कोई ऐसी ख़ुशबू में निकले हैं,
उसका कहना था के वो इश्क़ नहीं जानता,
उसकी आलमारी से दो चार खत उर्दू में निकले हैं..!