तु आये अचानक सामने मेरे,
मैं आकर तुझसे लिपट जाऊ,
तु कर ना पाये दूर मुझे खुद से,
मैं तेरी रूह में कुछ यूँ समां जाऊ..!
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तु आये अचानक सामने मेरे,
मैं आकर तुझसे लिपट जाऊ,
तु कर ना पाये दूर मुझे खुद से,
मैं तेरी रूह में कुछ यूँ समां जाऊ..!
शहर में ईद की तारीख मुक्कमल हो गयी,
साफ इधर से नज़र आ आता है उधर का पहलू,
चाँद के दीदार में वो छत पर आ चली,
आईने सा है रश्के-ए-क़मर का पहलू...!
उसके आसमां का क़मर हो सकता था मैं,
उसके लिए तो मर भी सकता था मैं,
उसने इजाज़त ही नहीं दी वरना,
उसको बांहों में भर सकता था मैं,
फ़ुरसत ही ना मिली मुहब्बत से,
वरना नफ़रत भी कर सकता था मैं,
दिल मानता ही नहीं उसकी बेवफ़ाई को,
वरना उसको देखें बिना गली से गुज़र सकता था मैं..!
बरसों हो गए रुख्सत हुए,
आओ ना अब ख्वाबों में मिलते है..!
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