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Chai me milawat ki bharpai

मेरी चाय में मिलावट की भरपाई करनी पड़ेगी,
लगता है कि तुम्हारे साथ हाथापाई करनी पड़ेगी,

तुम पी गए सारी की सारी चाय मलाई छोड़ दी,
अब बेचारे कप की अच्छे से सफाई करनी पड़ेगी,

तुम खौलती हुई चाय ले तो आई हो मेरे लिए मगर,
पीने से पहले फूंक कर थोड़ी ठंडाई करनी पड़ेगी,

जो तेरी यादों से मेरे दिल का ये मकां चरमरा रहा है,
लगता है जैसे इस मकां की मुझे चुनवाई करनी पड़ेगी,

ज़िंदगी की उलझनों ने जो उधेड़ रखे हैं मेरे तेरे,
उन तमाम रिश्तों की अब हमें तुरपाई करनी पड़ेगी,

उसको आदत है झगड़कर लगने की सीने से मेरे,
बे वजह उससे अब फिर से लड़ाई करनी पड़ेगी,

उसको तोहफे की आस "जामी" तेरी जानिब से लगी हुई है,
लगता है फिर से अहलिया की मुंह दिखाई करनी पड़ेगी..!

Jami Ansari By : Jami Ansari

Chai Poetry Views - 563 15th Dec 2021
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Insaan banna chahta hun

कामयाब लोगों में ख़ुद को शुमार करना चाहता हूं,
कुछ इस तरह मैं खुदका नाम करना चाहता हूं,

लोगों की ख्वाहिश है कि वो खुदा हो जाएं,
और मैं एक अच्छा इंसान बनना चाहता हूं,

मेरे पीछे भी लोग अच्छा कहें मुझको,
मैं कुछ ऐसे काम करके मरना चाहता हूं,

नफ़रत, हसद, धोखे से भरी इस दुनिया में,
मैं पैग़ाम-ए-मुहब्बत को आम करना चाहता हूं..!

Rushda Sadaf By : Rushda Sadaf

Zamaana Shayari Views - 300 12th Dec 2021
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December yaad aata hai

बहुत थोड़ा नहीं मुझको बराबर याद आता है,
मुझे बिछड़ा हुआ वो शख्स अक्सर याद आता है
 
ग़म जब घेर ले हमको खुशी जब रास न आए,
गुनाह तब वख्शवाने को पयंबर याद आता है,
 
मजबूर वक्त के हाथों, काम की तलाश करते हुए,
परदेश में रहने वालों को बहुत घर याद आता है,
 
ठंडी ठंडी रातें और उसके साथ चाय पीना,
मुझे जब याद आता है दिसंबर याद आता है..!

Hayat Ansari By : Hayat Ansari

Yaad Shayari Views - 564 6th Dec 2021
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December ki raat pasand hai

Tum jaante ho mujhe kya pasand hai,
teri baahon me beeti wo shaam pasand hai,
tere haathon ki wo chai pasand hai,
sard me kaaptein tere labo ki pyari aawaz pasand hai,
tum jaise ho, tumhara har mizaz pasand hai.
mera intjar, aur tumhara har etbaar pasand hai.
tumhare kareeb hone ka har ehsas pasand hai,
aur sbse zyyda tumhare sath bitayi hui,
wo "December" ki raat pasand hai.

Pari Mishra By : Pari Mishra

Romantic Shayari Views - 332 6th Dec 2021
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Zindagi December si kyu hai

चारों तरफ़ ये उदासी छाई क्यों है,
ये ज़िन्दगी, दिसंबर सी क्यों है? 

ये सर्द हवाएं,कपकपाते बदन,
उदास शाम और खाली आंखे,
जैसे ज़िन्दगी ठहरना चाहती हो,
कुछ कहना चाहती हो,
ज़िंदगी दिसंबर सी क्यों है?

आंखो से ख्वाबों को नोचना क्यों है,
सारी रात किसी की यादों में रोना क्यों है?
ज़िन्दगी उदास क्यों है?
ये ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है?

सुबह-शाम बस तुम्हारी याद आए,
कोई नई राह नज़र ना आए,
सारे रास्ते बंद से क्यों है?
ये ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है?

ये ज़िन्दगी भी दिसंबर की तरह एक दिन गुज़र ही जाएगी,
हां,लेकिन बहुत कुछ दे भी तो जाएगी,
ये उदासी , ये विरानी ये बेरंग शाम, क्यों है?
ये ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है?

ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है...?

Rushda Sadaf By : Rushda Sadaf

Zindagi Shayari Views - 264 6th Dec 2021
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