चाय और तुम्हारी यादें, अब गर्म नहीं हैं,
इस बात को गाँठ बाँध लो, ये नर्म नहीं है,
तुझको ही जीवन लक्ष्य, साध लिया था मैंने,
उतार दिया तीर कमान से, तू मेरा कर्म नहीं है,
दौड़ रहा हूँ प्रतिदिन, अंगारों में अब तेजी से,
लक्ष्य कठिन है मेरा, आसान इसका मर्म नहीं है,
लफ्जों में माधुर्य नहीं, खट्टापन का उदय हुआ है,
इश्क, मोहब्बत करना, अब मेरा धर्म नहीं है,
होगी पराजित मुझसे ज्वाला, वह गर्म नहीं है,
जकड़ लो शब्दों को मेरे, ये कोई नर्म नहीं है..!
आज मेरे पास कहने को शब्द नहीं हैं।
हृदय व्यथित है लेकिन निस्तब्ध नहीं है॥
अंतरंग में मेघ हैं किंतु नाद नहीं है।
करुणा की गंगा है परंतु गाद नहीं है॥
कदम चलना तो चाहते हैं पर बाट नहीं है।
कहने को सबकुछ है बस ठाठबाट नहीं हैं॥
जीने को जीवन तो है जिंदगी नहीं है।
प्रेम अथाह है किंतु बंदगी नहीं है॥
तुमसे बिछड़ के अब, किसी और से ना टकराऊँगा।
जग में रहकर भी, किसी का हो न पाऊँगा॥
सृष्टि के प्रपंच से, अब भ्रमित न हो पाऊँगा।
संसार से रिश्ता तोड़, चूर भले हो जाऊँगा॥
माया से मुँह मोड़कर, अचिर को अपनाऊँगा।
अचेतन दशा में रहकर, खुद को इतना बिखराऊँगा॥
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