नफ़रत करते हैं वो लोग मुझसे..
जिनसे मैं तेरे अंदाज में बात करती हूं..!
0
Total Poet
0
Total Poetry
0
Ghazals
0
Subscribers
Total Poet
Total Poetry
Ghazals
Subscribers
नफ़रत करते हैं वो लोग मुझसे..
जिनसे मैं तेरे अंदाज में बात करती हूं..!
तुम आओ अगर इस शहर में वापस तो,
उस सागर से ज़रूर मिलना तुम जहां हम पहली दफा मिले थे,
वहा वो बताएगा तुम्हें कि जान देने आयी थी वो यहां,
उसे जान क्यों देनी थी उसे खुद पता नहीं था,
वो बस ऐसा नहीं कर कर सकी,
वो परिवार कि बंदिशों में बंध चुकी थी,
इस समाज के लोग, ये वादियां उन्हें कितने ताने देंगे,
उसने जान नहीं दी पर उसे यहीं बसना था मेरे साथ,
वो हर रोज यहां आकर आंसू बहाती थी,
जिसमें भीग कर दुनिया जश्न मानती थी,
उसके आसुं खत्म नहीं होते और मैं कभी सुखा ना रहा,
उस कि आंखे देख में वापस लौट आता हूं,
वो हर रोज खुद को मुझसे ज्यादा भर कर लाती हैं...
मैं कभी कह न सका बात अपनी,
है बहुत अजब सी ये जात अपनी,
थीं सभी की निगाह हमारी ज़ानिब,
किसी सूरत न हुई मुलाक़ात अपनी,
वो आई भी हंस के बोलती भी रही,
मगर छुपा गई हर एक बात अपनी,
वो जो मुझे पसंद है, शहजादी है,
उस जैसी तो नहीं है औकात अपनी,
सारे मौसम बस महलों के लिए हैं,
फूस की गर्मी न ही बरसात अपनी,
कैसे आए इस मुआशरे में हम दर्दी,
सबको लगती है ऊँची जात अपनी,
जबसे बिछड़ गया है हमसफ़र मेरा,
तारे गिनते हुए कटती है रात अपनी,
गीबतें छोड़ दो, मान लो ये मशविरा,
या तो चुप रहो या करो बात अपनी..!
तेरे दिल में कितने ठिकाने हैं, बता तो सही,
मुझसे मिलने के कितने बहाने हैं , बता तो सही,
तेरी हंसी के पीछे आंखों में नमी देख लेते हैं,
तेरे दोस्त कितने पुराने हैं, बता तो सही,
हज़ार अफसाने मौजूद हैं नाकाम मुहब्बत के,
तुझे किस्से कितने सुनाने हैं, बता तो सही,
मैं तैयार करके आया हूं जिस्म व दिल को तेरे मुताबिक,
तुझे ज़ख्म कितने लगाने हैं, बता तो सही,
वैसे तो हर कोई दिखाई देता है अपना यहां,
तुझको गले से कितने लगाने हैं बता तो सही,
हर बार ही हार मिली है हमें रिश्तों को निभाने में,
हार के जस्न कितने मानने हैं, बता तो सही..!
© Copyright 2020-24 bepanaah.in All Rights Reserved