ज़िन्दगी की उलझनों में उलझती जा रही,
सब कुछ सुलझाते सुलझाते मैं खुद एक पहेली बनती जा रही,
ना चुप रही ना कुछ कह पा रही,
मैं अपनी बात किसी को नहीं समझा पा रही,
खामोशी से सब कुछ सहे जा रही,
मैं खुद से ही दुर जा रही,
इन पहेलीयों के बिच मैं अकेली होती जा रही,
ये दुनिया ना मुझे भा रही,
मैं इन उलझनों में उलझती जा रही..!