चारों तरफ़ ये उदासी छाई क्यों है,
ये ज़िन्दगी, दिसंबर सी क्यों है?
ये सर्द हवाएं,कपकपाते बदन,
उदास शाम और खाली आंखे,
जैसे ज़िन्दगी ठहरना चाहती हो,
कुछ कहना चाहती हो,
ज़िंदगी दिसंबर सी क्यों है?
आंखो से ख्वाबों को नोचना क्यों है,
सारी रात किसी की यादों में रोना क्यों है?
ज़िन्दगी उदास क्यों है?
ये ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है?
सुबह-शाम बस तुम्हारी याद आए,
कोई नई राह नज़र ना आए,
सारे रास्ते बंद से क्यों है?
ये ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है?
ये ज़िन्दगी भी दिसंबर की तरह एक दिन गुज़र ही जाएगी,
हां,लेकिन बहुत कुछ दे भी तो जाएगी,
ये उदासी , ये विरानी ये बेरंग शाम, क्यों है?
ये ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है?
ज़िन्दगी दिसंबर सी क्यों है...?