सवालों का सैलाब था उठता दिल में उस रोज़,
कुछ हसीन यादें भी थी साथ,
एक लम्बे अरसे बाद तय हुई थी वो मुलाकात।
सोचा था फुर्सत के कुछ पल बिताएंगे हम साथ,
कुछ अपने, कुछ तुम्हारे गमों का कर लेंगे हिसाब,
हसतीं, मुस्कुराती इंतज़ार में गुम थी मैं,
क्योंकि मुदत्तों बाद तय हुई थी वो मुलाकात।
कदमों की आहट को सुन, सुकुन मिला था,
क्योंकि इंतज़ार अब खत्म हुआ था,
कितनी नादान थी मैं कि ये भी ना समझी,
ये मुलाकात तो तय ही हुई थी ताउम्र के इंतज़ार के लिए।।