चाय और तुम्हारी यादें, अब गर्म नहीं हैं,
इस बात को गाँठ बाँध लो, ये नर्म नहीं है,
तुझको ही जीवन लक्ष्य, साध लिया था मैंने,
उतार दिया तीर कमान से, तू मेरा कर्म नहीं है,
दौड़ रहा हूँ प्रतिदिन, अंगारों में अब तेजी से,
लक्ष्य कठिन है मेरा, आसान इसका मर्म नहीं है,
लफ्जों में माधुर्य नहीं, खट्टापन का उदय हुआ है,
इश्क, मोहब्बत करना, अब मेरा धर्म नहीं है,
होगी पराजित मुझसे ज्वाला, वह गर्म नहीं है,
जकड़ लो शब्दों को मेरे, ये कोई नर्म नहीं है..!