जब खुशियों की बारिश बेमौसम गरजती है,
खोलकर बाहे अपनी भीगते हुए,
तुम मिल जाते हो !
सज कर जब में खुद को संवारते देखना चाहती हूं,
सच कहूं तो वो आइनेके पीछे बैठ मुस्कुराते,
तुम मिल जाते हो !
थक कर में जब खुद की ही तलाशमे निकलती हूं,
बेचैन हो कर परेशान मेरे सफरमे,
तुम मिल जाते हो !
और बेताक छोड़ अपने जिस्मको जब में आराम तलाशती हूं,
मेरे ही ख़यालो में उलझकर बैठे,
तुम मिल जाते हो !
इश्क़ का दावा करते जब अपने लबों से लगाया करती हूं,
बन कर सुकून मेरी चाय के आखिर,
तुम मिल जाते हो !