मां ने चलना सिखाया,
तूने लिखना सिखाया,
इसी पल जीने का सही तरीका सिखाया।
पिता ने मंजिल दिखाई तो,
तूने मंजिल की राह दिलाई।
एक अंधेरी मंजिल में खो गया था,
उजाला बन के तू आया।
इस सफर में तुझ पर गुस्सा तो बहुत आया पर,
पता था कुछ करना पाऊंगा और,
जिस दिन कर लिया उस दिन तू ने सिखाई संस्कार हो जाऊंगा।
याद है वह दिन मुझे उस दिन अच्छा काम मैंने किया था,
और तू उस दिन भी बे मुस्कुराया था,
दर्द हुआ था दिल में कि तू क्यों ना मुस्कुराया बाद में पता चला कि,
तू इतनी सी खुशी में खुश नहीं था,
तुझे कुछ बड़ा हासिल करवाना था।
मान उड़ गया था तुझसे शौक आने लगा था,
पर पता था इस सफर में तेरे से अच्छा कोई साथीदार मिलने वाला नहीं था।
साल गुजर गया तू मुझसे खो गया ऐसा लगने लगा था पता नहीं था कि,
अगले साल भी क्लास टीचर बन के तू ही आने वाला था।
अब समय था कुछ बड़ा करने का एक बड़ी छलांग लगाने का क्योंकि अब साथ तेरा था,
मंजिल को पाना था दुनिया के सामने अपना मां-बाप का नाम रोशन करना था।
मुझे पता है कि तू आज भी कहेगा की है मैंने नहीं लिखा है
क्योंकि, उस वक्त में ऐसा नहीं था पर आज जब सोचा तब मन से निकला हुआ आवाज था,
आज दिन था तुझे शुक्रिया करने का,
पर पता नहीं कि तू दुनिया के लिए टीचर था पर मेरे दिल के लिए तू एक भगवान था..!