ये कैसी तपिश भरी जिंदगी है,
ना दिन में चैन, ना रात को सुकून आता है,
बातों का संदूक खोलूं जो,
तो एक अधुरा सवाल आता है,
ये तेरे दिए जख़्म ना जाने क्यों नहीं भरते,
यहाँ मेरे लगाएं पेड़ सुख़ जाते हैं..!
ये कैसी तपिश भरी जिंदगी है,
ना दिन में चैन, ना रात को सुकून आता है,
बातों का संदूक खोलूं जो,
तो एक अधुरा सवाल आता है,
ये तेरे दिए जख़्म ना जाने क्यों नहीं भरते,
यहाँ मेरे लगाएं पेड़ सुख़ जाते हैं..!
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