तलब है ऐसी की भूलाई नहीं जाती,
प्यास है ऐसी की बुझाई नहीं जाती,
तुम्हे पाने की ज़िद क्यों कर रहा ये दिल,
ज़ख़्म है ऐसी की दिखाई नही जाती,
क्या-क्या पैतरे अपना लिए तुम्हे भूलने के,
मोहब्बत है कितनी की तन्हाई नहीं जाती,
तुम मुझमें इस कदर ज़िंदा रहती हो,
साथ है ऐसी की परछाई तक नहीं जाती,
बिछड़ के तुम कितनी तक़ाज़ा हो गयी,
दाम है इतना की महगाई नहीं जाती,
तुम मुझसे दूर तो हो गयी हो, फिर मेरे साथ ये क्या हो रहा?
मै किस असमंजस में फसा हुँ? क्यों मेरी तन्हाई नहीं जाती?
तलब है ऐसी की भूलाई नहीं जाती,
प्यास है ऐसी की बुझाई नहीं जाती,
तुम्हे पाने की ज़िद क्यों कर रहा ये दिल,
ज़ख़्म है ऐसी की दिखाई नही जाती..!