तमन्नाओं पे क्या तब्सिरा लिखूँ,
तमन्नाएँ कभी ख़त्म नहीं होती हैं,
आओ बैठो चाय पीएगें हम दोनों,
वैसे गुफ़्तगू-ए-चाय नहीं होती है,
तमन्ना कम ही रहें इस दिल में,
ख़्वाहिशें दिल की पूरी नहीं होती हैं,
फ़कीर ने मुझको एक दुआ दी है,
दुआ फ़कीर की अधूरी नहीं होती है..!