हर शख्स के यहाँ सौ किरदार है,
ख़ुद मे रह कर भी लोग ख़ुद से फरार है,
जो देखते है ओरों के ऐब,
वो कहाँ कर पाते अपना दीदार है,
जो मरते हैं हुस्न मे,
तो फिर उन्हीं की हार है,
निभा कर बेवफाई वो ,
क्यों करते मोहब्बत का इकरार है,
करके हज़ार गुनाह वो,
जाने कैसे पाते करार है..!