चाँद की तरह तुम भी ठहरो पूरी रात सनम
बिन तुम्हारे लगती है ये अधूरी रात सनम
इतनी भी क्या नाराज़गी हुई, गुस्सा छोड़ो भी
कभी अनजाने में ही करलो हमसे बात सनम
जमीं से फलकं तक, तुम्हे लेकर जाना है
कभी खाबों में ही सही, करो मुलाकात सनम
हिज्र का मंजर दे दो या गम से भरा सागर
मरते दम तक चाहूँगा, तुम्हारा फरहात सनम
एक भी कांटे दिख जाये गर राहो में तुम्हारी
कदमों के नीचे रख दूंगा अपने हाथ सनम
मोहब्बत के सिवा कभी कुछ मांगा नहीं मैंने
काश तुमने भी दिया होता मेरा साथ सनम
यु किसी हस्ते हुए को रुलाने का हुनर अच्छा है
सब खुश है, मुझको भी पढ़ा दो ये पाठ सनम
तन्हाई का वो कैसा हुआ करता था आलम
सुनकर तुम बिखर जाओगे, मेरे हालात सनम
एक रोज़ तुम भी कभी, तन्हा बैठो जाना
शिवम् पे गुज़री,बतायेंगी यादो की बारात सनम