समंदर सी भरी मेरी आँखें,
फिर भी ये बूँदे मुझ पर बरस रही है,
कैसे सुखाऊँ तेरी इन यादों को,
ये बारीश मुझे अंदर से भी भीगा रही है,
आज चाह रही वो ज़मी को आसमां से टूटकर,
हर एक बूँद में मुझे तेरी सूरत दिखाई दे रही है..!
समंदर सी भरी मेरी आँखें,
फिर भी ये बूँदे मुझ पर बरस रही है,
कैसे सुखाऊँ तेरी इन यादों को,
ये बारीश मुझे अंदर से भी भीगा रही है,
आज चाह रही वो ज़मी को आसमां से टूटकर,
हर एक बूँद में मुझे तेरी सूरत दिखाई दे रही है..!
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