मेरे तन्हा सफ़र का साथी है,
लड़खड़ाती डगर का साथी है,
शामो-सुबह साथ साथ रहता है,
यानी दोनों पहर का साथी है,
जिस नगर में कोई नहीं मेरा,
वो मेरे उस नगर का साथी है,
इश्क़ में क्या बड़ा क्या छोटा,
वो मेरी ही उमर का साथी है,
में जो उसका जिधर का साथी हूं,
वो भी मेरा उधर का साथी है,
जान तो खूब चिड़कता है मुझ पर,
लेकिन, अगर, मगर का साथी है,
मेरे दिल में बसा है वो "जामी"
यानी अपने ही घर का साथी है..!