तुम आओ अगर इस शहर में वापस तो,
उस सागर से ज़रूर मिलना तुम जहां हम पहली दफा मिले थे,
वहा वो बताएगा तुम्हें कि जान देने आयी थी वो यहां,
उसे जान क्यों देनी थी उसे खुद पता नहीं था,
वो बस ऐसा नहीं कर कर सकी,
वो परिवार कि बंदिशों में बंध चुकी थी,
इस समाज के लोग, ये वादियां उन्हें कितने ताने देंगे,
उसने जान नहीं दी पर उसे यहीं बसना था मेरे साथ,
वो हर रोज यहां आकर आंसू बहाती थी,
जिसमें भीग कर दुनिया जश्न मानती थी,
उसके आसुं खत्म नहीं होते और मैं कभी सुखा ना रहा,
उस कि आंखे देख में वापस लौट आता हूं,
वो हर रोज खुद को मुझसे ज्यादा भर कर लाती हैं...