रोया है कोई फुर्सत से सारी रात,
वरना इस रुखसत-ए-दिसम्बर में मौसम खराब ना होता,
इरादा उसका भी बिछड़ने का लगा,
वो युं अचानक ही खामोश तो ना होता,
सामने अगर होता ये दामन छूटने से पहले पकड़ लेता,
जाओ नहीं कह कर युं बाहों में भर लेता, उससे जुदा ना होता..!
रोया है कोई फुर्सत से सारी रात,
वरना इस रुखसत-ए-दिसम्बर में मौसम खराब ना होता,
इरादा उसका भी बिछड़ने का लगा,
वो युं अचानक ही खामोश तो ना होता,
सामने अगर होता ये दामन छूटने से पहले पकड़ लेता,
जाओ नहीं कह कर युं बाहों में भर लेता, उससे जुदा ना होता..!
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