देखें मुड़कर मुस्कुराते अगर,
पल भर लगे मेहरबानी सा इश्क़ !
झुकी पलकों से इजहार हो,
यूं ही हो अगर हो खानदानी सा इश्क़ !
कभी उमड़ता बचपना,
तो कभी झलकती जवानी सा इश्क़ !
रुका सा मंज़र कहीं,
तो अब आगे बढ़ती कहानी सा इश्क़ !
जरा बावरी तो जरा बचकानी,
लगे तभी हरकत नादानी सा इश्क़!
कहीं चमकती आंखों जैसे,
तो कभी मुस्कुराहट नूरानी सा इश्क़ !
किस्सों वादो सा कहीं,
तो कभी महफ़िल में दी बयानी सा इश्क़ !
नया आहन सर्द हवाएं अगर
तो लगे की फ़िरदौस आसमानी सा इश्क़ !
कभी लगे हुक्म जैसा,
तो चलाता अपनी भी मनमानी सा इश्क़ !
मुश्किल सा लगे दस्तूर,
और लगे जो अफसाना आसानी सा इश्क़ !
कहीं ठहरा तो कहीं गहरा पानी इश्क़ !
कहीं जिस्मानी तो कहीं रूहानी सा इश्क़!