सूखापन, सफेदी है हर तरफ, हरियाली से नाराज़गी चल रही है,
दुखों ने दबोच रखा है मुझे, खुशहाली से नाराज़गी चल रही है,
तेरी गली से जब भी देखूं, मुझको दखल देती है अक्सर,
घर की खिड़की में जो लगाई, उस जाली से नाराज़गी चल रही है,
खुशी का फूल कैसे खिलाऊं, मैं दिल को बाग कैसे बनाऊं,
जो है मेरा अपना माली, उस माली से नाराज़गी चल रही है,
परिंदे मुंडेरों पर आते नहीं है, पेड़ पर चेह- चहाते नहीं है,
उनकी शायद पेड़ की हर, डाली से नाराज़गी चल रही है,
कई दिनों से भूखा हूं फिर भी भूख मुझको लगती नहीं,
खाता था जिसमें खाना अक्सर, उस थाली से नाराज़गी चल रही है,
बचपन से अपनी जवानी तक, "जामी" सफ़र करने के बाद,
घर मेरा बन रहा है लेकिन, घरवाली से नाराज़गी चल रही है..!