इस चेहरे से मुस्कुराहट को धोया जाए,
क्यों ना फुर्सत से आज कहीं बैठ कर रोया जाए,
फिर से आज कलम को स्याही में भिगोया जाए,
क्यों ना अपने ग़मो को लफ्ज़ो में पिरोया जाए,
आएंगे ना वो लौटकर चाहे ये रात भी गुज़र जाए,
अब ख़त्म करके इंतजार क्यों ना ख़ुद को ख़ुद में सुमोया जाए..!