रात की तन्हाई में तुमको देखा और चमक उठा,
चाँद भी अपना गुरूर तोड़कर और भी दमक उठा,
दरख़्त पे परिन्दे यु ही मायूस बैठे हुए थे,
तुम्हरे पायल की छन से पूरा बाग़ चहक उठा,
इत्र की सीसियो का तो ग़ुरूर तब टूट गया,
जब तुम्हारी खुशबू से पूरा शहर महक उठा,
देखकर तुमको जलती होगी ये सारी अप्सराये भी,
गजब तो तब हुआ जब पूरा क़ायनात दहक उठा,
यु तो मोहब्बत में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी,
तुम्हारी अदाओं पे शिवम् का भी दिल बहक उठा..!