न फूलों की खुशबू है न पत्तों की कड़कन है,
देखो कितनी पनप गई अबकी बहार में खामोशी,
नहीं आती आवाज़ें उसकी, मेरे कानो तक,
महसूस मुझको होती है उसकी पुकार में खामोशी,
कभी हम बोल देते हैं दुनिया भर की सब बातें,
कभी कभी नहीं होती हमारे इख्तियार में खामोशी,
न जाने कितने आशियाने बहा कर ले गई होगी,
बता मुझको रही है ये बहती धार में खामोशी,
अभी हर सिम्त उजाला है, बरपा शोर शराबा है,
"जामी" हो जाएगी हां एक दिन तेरे मज़ार में खामोशी,