कभी चलते- चलते जब कहीं दूर निकल जाओं,
और फिर लौट कर आने का कभी दिल जो करें तुम्हारा,
तो पीछे बाहें फैलाकर तुम्हें सीने से लगाने को,
मैं हूँ ना..!
कभी वक्त से लड़ते- लड़ते कदम तुम्हारें लड़खड़ा जाए,
तो तुम्हें हर पल संभालने को,
मैं हूँ ना..!
कभी जो सबसे रुठकर, सिर्फ एक से बतियाना हो,
तो हज़ारों किस्से दोहराने को,
मैं हूँ ना..!