ज़िक्र मेहबूब का तो, हूजूर किया हमने,
नफरत के शहर में,इश्क़ मशहूर किया हमने,
यू कातिलो के बस्ती से, जिन्दा लौट आये है,
क्यों लग रहा कोई, बड़ा कसूर किया हमने,
बज़्म में बैठकर बताना है, सबको एक दिन,
नफरत तो न हुआ, इश्क़ जरूर किया हमने,
वो बेवफाई वाला दाग, तुम्हे नहीं लगने देंगे,
सबसे कहेंगे बिछड़ने को,मजबूर किया हमने,
अब कोई भी कसक, शिवम् बाकी न रहेगी
तुम्हे रोकने की कोशिश, भरपूर किया हमने..!