मैंने उस पर लिखी है एक ग़ज़ल,
वो ऐसी है जैसे कीचड़ में खिलता कमल.
मैंने भेजा है एक गुलाब उसको,
ये है मेरी तरफ से छोटी सी पहल,
क्या बताऊं? कितनी लावारिश हैं यादे उसकी,
उसकी यादों से मेरी इबादत में पड़ता है खलल,
कितने भी कठिन मरहलें हों ज़िन्दगी में,
मां की दुआए साथ हो तो है हर काम है सहल,
मुझको यूं नज़र अंदाज़ करके ना जा,
मुझको उजाड़ने में सिर्फ तेरा है दखल,
मुझसे लग कर ही बुनती है वो सारे सपने,
उसके लिए मेरा कंधा ही है रहल..!