सुनते तुम्हारी धड़कने वक़्त लिपट ही ना जाऊं तुम्हारी रूह से कहीं,
क्या तब फैलाकर बाहें मुझे अपने दिल में बसाओगे तुम.?
तकते तुम्हारी आंखों में अगर आशीयाना बनाने वहीं जाऊं कहीं,
क्या तब बिठाकर पलको में मुझे अपनी बनाओगे तुम.?
लड़ते तुम्हारी उंगलियों से थक कर जब रुक जाऊं कहीं,
क्या तब उलझाकर सासो में मुझे बताओगे तुम.?
समेटते तुम्हारी ख्वाहिशें अगर खुद से मुकर भी जाऊं कहीं,
क्या तब लगाकर लबो से मुझे अपनी शाम कोई बिताओगे तुम.?