हज़रों ख्वाहिश थी दिल में जब में छोटा बच्चा था,
तंदुरुस्ती थी हर जिस्म में सब कुछ बेहद अच्छा था,
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सोचा गांव से बाहर
जाकर अपने मां बाप की ख्वाहिशों को पूरा करूंगा,
तो चल पड़ा में अपना बोरिया बिस्तर बांध कर एक
अंजान से शहर में जहां दूर दूर तक कोई अपना न था,
मां बाप की याद बेहद सताने लगी,
ठंडी रातों में खून के आंसू रुलाने लगी,
फिर वक्त गुज़रा, अंजान शहर में दिल लगा ही था कि
मां का फोन आया और बोली, तुम्हारे बाबा की तबियत
ठीक नही है, आखरी सांसे चल रही हैं,
मेरे पैरो तले जैसे ज़मीन खिसक गई हो,
फिर आंखो में आंसू लिए और दिल में अपनी
सारी ख्वाहिशों को दबा कर चला आया अपने बाप को
आखरी विदाई देने,
ख्वाहिशें हमसे हमारा बचपन, जवानी, और हमारे जीने का सहारा छीन लेती है..!