दिन और दोपहरी तो किसी तरह निकल जाती,
दर्द तो तब होता था, जब तन्हाई और रात होती,
तुम अब वापस आये हो? इसमें क्या हैरानी है,
तुम गए ही न होते, तो कोई बात होती,
इतना लम्बा अरसा तम्हारे साथ गुजारा था हमने,
मैं भी तुम्हारी तरह भुला देता,गर शुरुआत होती,
हमारे भी वो वादे - वो बाते, झूठे होते अगर,
तो शायद आज यादो की, ऐसी न बारात होती,
अब वो पल याद करके दिल बैठ सा जाता है,
सोचता हू ,काश तुमसे कभी न मुलाकात होती,