घुमड़ घुमड़ के घिर आए काले काले बादरा,
आज फिर से बरसेंगे ये देखो मेरे आँगन,
तन को भिगोयेगा मन मेरा फिर भी तरसेगा,
मेरे पिया जी की अगन आज फिर ये लगाएगा,
मेरे पिया जी गए है जो दूर परदेश,
क्यों तुम आ जाता है मुझे को सताने रोज,
न हीं मुझे तेरी कोई अब दरकार है,
प्यार की बारिश मे उनके बिना भीगने की मुझे मे ना कोई आस है,
ऐ बादरा पता है तुम्हे फिर भी इतरा के इतना बरसते हो,
मेरे अश्कों के समंदर से कही तुम भी तो नहीं जलते हो..!