जो सन्नाटा पसरा है आज शहर की चौखट पर।
क्या पाया रे मानव! तूने प्रकृति से छे़डछ़ाड कर?
नियम का पालन करलो कुछ दिन वक्त अभी भी संभलो तुम।
प्रकृति से न छेड़े होते आज न होता मौसम गुमसुम॥
डाल दी मुसीबत खुद के गले में ये तेरी नादानी थी।
नहीं बचेगा धरा पर कोई जो अब किसी ने मनमानी की॥