एक बार जो चढ़ा तुम्हारे इश्क़ का रंग मुझपर,
फिर वो मानों गहराता ही गया,
वो सांझ ढ़लें जब मिले थे हम, एक-दुजे में जब गुलें थे हम,
संगीत सुरिला बजा था तब,
जब तुम्हारे इश्क़ का रंग मुझपर चढ़ा था!!
लम्हों की उलझनों में मानों हम सुलझते गए,
एक दुजे में खोकर मैं और तुम से हम हो गए,
मेरी बिखरी जुल्फों को जब संवारा था,
तो मेरा जीवन संवरता सा लगा था,
जब तुम्हारे इश्क़ का रंग मुझपर चढ़ा था!!
मैंने आंखों से तुम्हारे हज़ारों अनकहे अलफ़ाज़ों को पढ़ा था,
तुम्हारे सीने पर सर रख, तुम्हारी बैचेन हुईं धड़कनों को सुना था,
मंज़िल की खबर नहीं है मुझे, पर हां मैंने खुद तुम्हें अपना रहगुज़र चुना था,
मेरा दिल उस रोज़ कुछ अलग तरहा से धड़का था,
जब तुम्हारे इश्क़ का रंग मुझपर चढ़ा था!!