मुकम्मल ना सहीं लेकिन इश्क़ तो हुआ था,
मंज़िल ना मिली लेकिन सफर तो शुरू हुआ था,
दिल में दबा लूं या होठों से बयां कर दूं, जो दर्द तुने दिया।
तसल्ली तो बस इसी बात की है, कि मुझे भी कभी इश्क़ हुआ था।।
मुकम्मल ना सहीं लेकिन इश्क़ तो हुआ था,
मंज़िल ना मिली लेकिन सफर तो शुरू हुआ था,
दिल में दबा लूं या होठों से बयां कर दूं, जो दर्द तुने दिया।
तसल्ली तो बस इसी बात की है, कि मुझे भी कभी इश्क़ हुआ था।।
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