छोटी-छोटी बातो पर, में तुमसे झगड़ना चाहती हूं,
हां, कभी - कभी में तुमसे लढना भी चाहती हूं..!
साथ तुम्हारे उस ढलती हुई शाम को,
सुकून से गुजरना चाहती हूं..!
उलझ कर फिर तुम्हारी सांसो में,
तारो को रात भर संवारना भी चाहती हूं..!
सितारों से भरे पड़े इस खाली से आसमान में,
में तुम्हारे साथ घूमना चाहती हूं..!
लेकर शबाब के बस दो घुठ,
मेरे हर जश्न में तुम्हारे साथ झूमना भी चाहती हूं..! |
हवाओं से लिपटकर,
तुम्हारे साथ चलना भी चाहती हूं..!
भटककर मुझ मे हजारों मरतबा,
तुझमें कहीं ठहरने भी चाहती हूं..!
मेरी खास सी जिंदगी के,
कुछ आम से लम्हे तुम्हारे साथ बिताना चाहती
वो प्यार की सारी झूठी कसमें - रस्में,
तुम्हारे साथ निभाना भी चाहती हूं..!
रख कर सारे असू तुम्हारे ही काधे पर,
में बस तुम्हारे सामने रोना चाहती हं..!
थक कर किसी रोज इस आम सी जिंदगी से,
तुम्हारे सिरहाने सर रख कर में सोना भी चाहती
गहरी सी सासो में कभी उलझ कर तुम्हारे,
में तुम्हे इतने करीब से तकना चाहती हूं..!
बचाकर तुम्हे जमाने की सारी खताओसे,
बस मेहफूज मेरे दिल में रखना भी चाहती हूं..!
दर्द में हो अगर किसी रोज तुम,
असुओ को तुम्हारे गिरने से बचाना चाहती हूं..!
रूठो तुम यूहीं कभी मुझसे,
में बेवजह तुम्हे हसना भी चाहती हूं..!
किसी स्वादिष्ट व्यंजन सा,
में हर बार तुम्हे चखना चाहती हूँ..!
खत्म ना हो जाए अचानक से कभी,
अपने लबों पर तुम्हे रखना भी चाहती हूं..!
चाय की तरह जरूरी से हो, मुझे हर सुबह मिलो,
में तुम्हे जायके से पीना चाहती हूं..!
अरे सुनो,
हां, मैं तुम्हारे साथ जीना भी चाहती हूं..!