एक उम्र लगी ख़ुद को ये समझाने में,
के कोई नहीं होता अपना इस ज़माने में,
एक उम्र लगी ख़ुद को मनाने में,
के जो ना हो किस्मत में उसे जाने दें,
एक उम्र लगी ख़ुद को बेहलाने में
के जब उन्हें मोहब्बत ही नहीं तो क्या मतलब आज़माने में,
एक उम्र लगी ख़ुद को ये जताने में,
के जो लकीरों में नहीं, अच्छा है उसे भुलाने में,
एक उम्र लगी ख़ुद को ये कह कर हँसाने में,
ये ज़िन्दगी है अम्मारा इसे अब यूँ ही गुज़र जाने दे..!
Ek umar lagi
By : Ammara Khan
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ammukhan590
Judaii Poetry
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27th Apr 2021