सुना है वो मेरा ज़िक्र_ए_आम करता है,
अब याद वो मुझको हर शाम करता है,
मेरी मोहब्बत को जो ना काम करता था,
सुना है देख के शीशे में ख़ुद को वो शीशा तमाम करता है,
कभी जो दर्द देकर मुझको खुद आराम करता था,
सुना है अब ख़ुद का जीना वो हराम करता है,
लगाकर महफिल कुछ इंतेज़ाम करता है,
सुना है अब एक एक जाम वो मेरे नाम करता है..!