अब हालातों में मैं ख़ुद को ढाल लेती हूँ,
तमन्ना कोई टूटे तो दिल संभाल लेती हूँ,
मुझे फँसाने के लिए बिछा कोई जाल तो नहीं,
अब हर एक चाल आसानी से पहचान लेती हूँ,
नहीं लगती लोगों की बातें ज़हर मुझको,
अब एक आधा सांप तो आस्तीन में पाल लेती हूँ,
संभाल कर रखा था दिल जब तब काँच का था,
पत्थर का हो चुका है अब शौक से उछाल लेती हूँ..!