उसको गले लगाकर दिल अलविदा कहना चाहता है,
दिल भी कितना पागल है देखो क्या-क्या चाहता है,
वक़्त, मुहब्बत, खूलूस, इज़्ज़त एतेबार सब कुछ तो दिया है मैंने,
अब तू मुझसे इस रिश्ते में और क्या-क्या चाहता है,
एक ज़माना था जब दिल नहीं खिलौने टूटा करते थे,
अब देखो ज़माना बसर-ए-ज़िन्दगी के खातिर क्या-क्या चाहता है,
बुलाया है आज मैंने उसको शाम की चाय पर,
पता तो चले आखिर वो हमसे और क्या-क्या चाहता है..!