कहीं चिड़ियों के घोंसले, कहीं रेत के घरौंदे,
कहीं सूरज की लालिमा, तो कहीं चांद की रोशनी,
सब कुछ हैं उस क्षितिज के परे!!
कहीं उमंगो भरी सुबह, तो कहीं सुहानी सी शाम,
कहीं तपती सी दुपहरी, तो कहीं सुकून वाली रात,
सब कुछ हैं उस क्षितिज के परे!!
कहीं रुठते हैं अपने, कहीं मुस्कुराते अजनबी,
कहीं दो पल की चुप्पी, कहीं शदियों लंबी बातें,
सब कुछ हैं उस क्षितिज के परे!!
कहीं हल्की सी नोक- झोंक, कहीं हज़ारों झप्पियाँ,
कहीं रुठने की इज़ाज़त, कहीं मनाने का हक़,
सब कुछ हैं उस क्षितिज के परे!!
कहीं पाने की चाहत, तो कहीं खोने का डर,
कहीं उलझे सवाल , तो कहीं सुलझे से जवाब,
सब कुछ हैं उस क्षितिज के परे!!
कहीं गम का सरोबार, तो कहीं बेबाक मुस्कुराहटें,
कहीं यारों की महफ़िल, तो कहीं चुभता अकेलापन,
सब कुछ हैं उस क्षितिज के परे!!
कहीं अकेले मुसाफ़िर , तो कहीं तुम सा साथी,
कहीं अजनबी मुलाकातें, तो कहीं गहराती मोहब्बतें,
सब कुछ हैं उस क्षितिज के परे!!
Chitij ke pare
By : Hetal Rajpurohit
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Zindagi Shayari
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20th Jun 2020