Chai aur wo

चाय और वो, 
वो चाय जैसी तलब है मेरे लिए
मैं उस चाय में घुली अदरक जैसा,
वो लोंग जैसी गरमाहट है तो
मैं उस चाय में डूबा बिस्किट जैसा

जब भी देखता हूं तुझे हर मरतबा तो
खुदा कसम तू बड़ी हॉट सी लगती है

जब भी छूता हूं तेरे लबों को मेरे लबों से तो
तू कुल्लड़ वाली चाय की पहली घूट सी लगती है
तू कुल्लड़ वाली चाय की पहली घूट सी लगती है  

तू जब जब उबलती है ना तो तुझे छूने से डरता हूं मैं
हां ये बात भी है कि तुमसे बेपनाह मोहब्बत भी करता हूं मै

अब तुम ही बताओ कोई इतना गुस्सा करता है क्या
गुस्से में अपने दायरे से कोई बाहर इतना निकालता है क्या

पर तू जितनी कड़क होती है ना उतनी ही क्यूट सी लगती है
जब भी छूता हूं तेरे लबों को मेरे लबों से तो
तू कुल्लड़ वाली चाय की पहली घूट सी लगती है,
हद है यार,
आज फिर से झगड़ा हो गया हमारा,
वो कहती है कि चाय चाहिए या मै
ये फैसला करलो आज तुम
मैने हाथ रखा चाय के कप पे और निगाहें उनकी तरफ
फिर मुस्कुराते हुए कहा सिर्फ तुम

वो शायद जलती थी मेरी चाय की मोहब्बत से
लेकिन चाय तो उसको भी बड़ी स्वीट सी लगती है
जब भी छूता हूं तेरे लबों को मेरे लबों से तो
तू कुल्लड़ वाली चाय की पहली घूट सी लगती है 

तू कुल्लड़ वाली चाय की पहली घूट सी लगती है..!

By : Maan Ashiwal

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Chai Poetry Views - 308 5th Jul 2020

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