मेरे कांधो पे मेरी तन्हाई बैठी हुई है,
एक ख्वाहिश लुटी लुटाई बैठी हुई है,
एक मैं जो उसकी खातिर लड़ रहा हूं,
एक वो जो कर के सगाई बैठी हुई है,
मैं तो उसको मना रहा हूं, लेकिन मगर वो
कितनी बातें दिल से लगाई बैठी हुई है,
झांकने देती नहीं है किसी को दिल में,
वो इस तरह दिल में समाई बैठी हुई है,
सर पे जामी चढ़ी हुई है कुछ इस तरह से,
चाय पर जैसे मलाई बैठी हुई है..!