तुमसे बिछड़ के अब, किसी और से ना टकराऊँगा।
जग में रहकर भी, किसी का हो न पाऊँगा॥
सृष्टि के प्रपंच से, अब भ्रमित न हो पाऊँगा।
संसार से रिश्ता तोड़, चूर भले हो जाऊँगा॥
माया से मुँह मोड़कर, अचिर को अपनाऊँगा।
अचेतन दशा में रहकर, खुद को इतना बिखराऊँगा॥
तुमसे बिछड़ के अब, किसी और से ना टकराऊँगा।
जग में रहकर भी, किसी का हो न पाऊँगा॥
सृष्टि के प्रपंच से, अब भ्रमित न हो पाऊँगा।
संसार से रिश्ता तोड़, चूर भले हो जाऊँगा॥
माया से मुँह मोड़कर, अचिर को अपनाऊँगा।
अचेतन दशा में रहकर, खुद को इतना बिखराऊँगा॥
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